अर्थ: हे प्रभु जब क्षीर सागर के मंथन में विष से भरा घड़ा निकला तो समस्त देवता व दैत्य भय से कांपने लगे (पौराणिक कथाओं के अनुसार सागर मंथन से निकला यह विष इतना खतरनाक था कि उसकी एक बूंद भी ब्रह्मांड के लिए विनाशकारी थी) आपने ही सब पर मेहर बरसाते हुए इस विष को अपने कंठ में धारण किया जिससे आपका नाम नीलकंठ हुआ।
अर्थ: आपके सानिध्य में नंदी व गणेश सागर के बीच खिले कमल के समान दिखाई देते हैं। कार्तिकेय व अन्य गणों की उपस्थिति से आपकी छवि ऐसी बनती है, जिसका वर्णन get more info कोई नहीं कर सकता।
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु अब संकट भारी ॥
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥ पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।
अर्थ- हे शिव शंकर आप तो संकटों का नाश करने वाले हो, भक्तों का कल्याण व बाधाओं को दूर करने वाले हो योगी यति ऋषि मुनि सभी आपका ध्यान लगाते हैं। शारद नारद सभी आपको शीश नवाते हैं।
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बन्दि महा सुख होई।।
प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं जगन्नाथनाथं सदानन्दभाजम् ।
शिव आरती
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भये प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥